The battle of Rezang La-1962 वीरगाथा

रेझांग ला की लड़ाई (battle of Rezang La)

वो  युद्ध जो आखरी आदमी और आखिरी गोली तक लडा गया । (battle till last man and last bullet)

  २१ नवंबर १९६२ इस दिन चीन ने युद्धविराम की घोषणा कर दी । २० अक्तूबर १९६२ चे चल रहे इस युद्ध में चीन ने भारत का बहुत सारा इलाका अपने कब्जे में लिया था । जैसा की सबको पता है के ये युद्ध  चीन ने जीत लिया  था । लेकिन ऐसा क्या हुआ की २१ नवंबर को चीन ने अचानक से युद्ध विराम की घोषणा कर दी ?
     इसका जवाब है ३ दिन पहले  याने की १८ नवंबर को हुए रेझांग ला लड़ाई ( battle of Rezang La)

 में !

रेझांग ला की लड़ाई कुछ गिने चुने अविश्वसनीय युद्धों में से एक मानी जाती है । पूरी दुनिया के लोए प्रेरनादायी तो हम भारतीयों के लिए गर्व कराने वाली !

स्थान- रेझांग ला । १८००० फीट ऊंची साउथ लद्दाख की घाटी

महत्व-  दक्षिण लद्दाख का प्रवेशद्वार । रेझांग ला अगर कब्जे में आया तो पूरा लद्दाख कब्जे में आ सकता है । चुशुल की airforce के airfield पर कब्जा संभव ।

   इसीलिए चुशुल के रक्षण हेतु, रेझांग ला में आखिरी चौकी की जिम्मेदारी थी मेजर शैतान सिंह और १३ कुमाऊ रेजीमेंट के १२० जवानों के ऊपर !

   यह १२० जवान मतलब हरियाणा के अहिरगढ़ गाव के वीर थे । ऊंचा लंबा कद, मजबूत शरीर और इरादों में आसमान ! इनके पास बहुत कम गोलाबारूद और साधारण बंदुके थी जो बंदुके दूसरी विश्वयुद्ध के बाद प्रभावहीन बन चुकी थी ।

मौत का तांडव-

   १८ नवंबर १९६२,  चुशुल में लगातार बर्फ गिरने से सभी जगह बर्फ की चादर फैल गयी थी ।

सुबह के ३.३० बजे ६००० चीनी सैनिकों ने रेझांग पर अचानक से हमला कर दिया । हालात की गंभीरता को समझते हुए मेजर शैतान सिंह ने आर्मी हेडक्वार्टर से संपर्क किया और अतिरिक्त गोलाबारूद, बंदुके कुछ और सैनिकों की मदद मांगी । लेकिन सामने से जवाब आया

“अति हिम वर्षा के कारण तुरंत मदद भेजना असंभव है ऐसे हालात में आप चाहे तो आपके १२० जवानों को लेकर पीछे हट सकते है फैसला आपको लेना है over and out”
मेजर शैतान सिंह ने अपने जवानों को बुलाया और परिस्थिति का अंदेशा सब को देकर कहा

“अगर कोई पीछे हटना चाहता है तो हट सकता है, मैं मेजर हूँ मैं पीछे नहीं हटूँगा”
    पीछे हट जाए वो भारतीय जवान कैसे हो सकते है?”
  सब के सब १२० जवानों ने गर्जना पूर्ण युद्ध घोष किया

“कालिका माता की जय!!!!”
 और फिर शुरू हो गयी ऐतिहासिक लड़ाई !

मेजर शैतान सिंह ने उन १२० जवानों को छोटी छोटी टुकड़ियों में बाँट दिया । अलग अलग जगह पर उन्हे तैनात करके खुद आगे का मोर्चा संभालने लगे ।

चीनी सैनिकों से लगातार एक के बाद एक ५ हमले किए । हर हमले में ६००-७०० चीनी सैनिक थे ।

मेजर शैतान सिंह अपने हर एक जवान का मनोबल बढ़ा रहे थे । लेकिन उनका गोलाबारूद खतम होने को आया इसलिए भारतीय जवानों ने सामने वाले चीनी सैनिकों वर हमला बोल दिया ।

कुछ जवान अपने हाथों से तो कुछ बंदूक की नोक  से चीनीयों को खत्म करने लगे । कुछ जवानों तो हद ही कर दी दुश्मन के खेमे में जाकर ३-३ चीनियों से भिड़े लगे ।

  ऐसे में मेजर शैतान सिंह गंभीर जखमी हो गए । उनको रामचन्द्र यादव इस जवान ने उठाकर एक पत्थर के पीछे ले गए । शैतान सिंह ने उस जवान को आदेश दिया की हेडक्वार्टर जाकर उन सभी १३ कुमाऊ रेजमेन्ट के जवानों की वीरता और अतुलनीय पराक्रम की गाथा सुनाओ  ।  रामचन्द्र यादव अपने मेजर का आदेश मानने को मजबूर थे । सुबह ३.३० से ९ बजे तक चले हुए इस लड़ाई में १२० जवानों में से ११४ वीर गति को प्राप्त हुव तो ५ युद्ध कैदी बने । उस रात चीन के १३०० से ज्यादा सैनिक कुत्ते की मौत मारे गए ।

   रेझांग ला में चीनी सैनिकों के लाशों का जैसे पर्वत खड़ा हुआ था ।  मेजर शैतान सिंह और उनके इस १२० जवानों के मौत के तांडव से चीन पूरी तरह बोखला गया । इसीलिए उसने ३ दिन बाद २१ नवंबर १९६२ को युद्धविराम की घोषणा कर दी ।

३ महीनों के बाद जब सर्दियाँ खत्म हुई तब कंपनी मुख्यालय ने  उन जवान और मेजर साब की खोज शुरू हो गयी । तब उस रेझांग ला के रोमांच का पता सबको चला । भारतीय जवानों के पूरे जिस्म पर  गोलियां लगी थी । सब के प्राण जा चुके थे फिर भी किसी के हाथ में बंदूक थी तो किसी के हाथ में ग्रेनेड ! शहादत के बाद भी भारत माँ के सेवा के लिए सदैव तत्पर भारतीय जवान !!

खोज में   कंपनी को एक शव मिला ।

सभी जगह गोलीयां लगि हुई !

पैर के अंगूठे को एक रस्सी बांधकर उस रस्सी का दूसरा भाग मशीन गण के ट्रिगर से बंधा हुआ था ।

 वो वही थे मेजर शैतान सिंह !

मरणोत्तर परमवीर चक्र ( सर्वोच्च सम्मान) से सम्मानित !!

  आज उनके इस अति शूर, और बेहद पराक्रम का स्मृति दिन !

उन अमर १२० जवान और मेजर शैतान सिंह के बहुमूल्य बलिदान को हम सब की श्रद्धांजलि !!

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